मंगलवार, 26 जून 2012


क्या सोचा था ,
और क्या हो गया,
क्या हमने कभी सोचा था,
कि  हमारे प्यार की परिणिति,
 यूँ आंसुओ में होगी,
किरिच-किरिच कर ,
टूट जायेंगे हमारे सपने,
दोष किसे दूँ ,
जानती हूँ कसूरवार मैं हूँ,
लेकिन क्या समझाने पर भी,
तुम समझ पाओगे ,
 कि  क्या थी मेरी मनोस्थिति ,
जब लिया था मैने ,
तुमसे अलग होने का  फैसला,
क्या समझ पाओगे तुम,
 मेरे अन्दर की उस रिक्तिता को,
उस खालीपन को ,
मेरी आत्मा की उस अतृप्तता  को,
जो रह गई  है,
तुम्हारे जाने के बाद।

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