बुधवार, 13 जून 2012


क्या ये वही आँखे हैं,
जिनमें नज़र आती  थी,
मेरे लिए कितनी चाहत ,
एक शोखी एक शरारत,
कुछ न कह कर भी,
जो कह देती थी बहुत कुछ,
जेहन की तह में उतर जाने वाली ,
वो दो गहरी और स्नेहिल आँखें,
इन दो जोड़ी आँखों का उठाना,
उठ कर मिलना,
मिल कर झुकना ही तो थी हमारी मौन भाषा,
फिर आज  जाने क्यों ये इतनी अजनबी हो गयी,
 शायद ये पहचान नहीं पा रही हैं  इन  आँखों को ,
 जिनमे  काजल की जगह ले ली  है आंसुओं ने,
लेकिन आंसुओं से धुल कर भी,
मिट नहीं पाई है, तुम्हारी तस्वीर,
इन आँखों से,
तुम  चाहे न करो सामना ,
लाख चुराओ नज़र,
लेकिन फिर भी ढूँढती  रहेंगी मेरी आँखें,
वही तुम्हारी प्यार भरी नज़र।


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