सोमवार, 20 अगस्त 2012

कल्पना






 तुम एक खूबसूरत सपना हो मेरे लिए ,
या एक कल्पना ,
जिसमें खोकर मैं भूल जाती हूँ ,
अपने जीवन की कड़वी सच्चाइयों को,
कुछ देर के लिए याद  नहीं रहता ,
कि  सच वो नहीं है,जो मैं सोचती हूँ,
सच वो है जो मैं देखती हूँ,
जिसे झेलती हूँ,जिसे जीती हूँ,
इस सच को जान  कर भी,
मैं निकल नहीं पाती ,
या निकलना ही नहीं चाहती,
तुम्हारे सपनो से बाहर,
क्योंकि इन सपनो में,
 मैं वो सब पा  लेती हूँ,
जो नहीं मिलता  मुझे यथार्थ में,
वो सब कह देती हूँ जो नहीं कह पाती ,
तुम्हारे सामने  आने पर,
वो सब सुन लेती हूँ,
जो तुम कभी कहते ही नहीं,
देख लेती हूँ तुम्हे जी भर के ,
छू लेती हूँ ,महसूस करती हूँ  तुम्हे
अपने पास, बहुत पास,
लेकिन सिर्फ कुछ पलों के लिए,
पर वो कुछ पल ही दे जाते हैं मुझे वो सब,
तरसती रही हूँ जिसके लिए आज तक 



फिर वही कशमकश,
फिर वही उलझनें,
फिर वही बेवजह की परेशानियाँ,
न तुम चैन पाओ ,
न मैं चैन पाऊ,
क्यों फिर से वही सारी  नादानियाँ ,
बातो जरा क्या हुआ मुझको हासिल,
तुम्हे याद  रख कर,
तुम्हे प्यार कर के,
बहुत नींद खोयी,
बहुत चैन खोया,
अभी तक है दिल में वो बेचैनियाँ,
 मेरी  रूह को अब जरा चैन दे दो,
करो मुझ पे थोड़ी मेहरबानियाँ






कभी-कभी बच्चो सी जिद ,
करने लगती हूँ मैं,
पाना चाहती हूँ वो सब,
जो खो गया है वक़्त की दौड़ में,
जानते हुए भी कि अब मुश्किलहै,
उसका वापस आना ,
फिर भी चाहती हूँ मैं ,
वापस पाना वो,
 जो मिला था हमें,
 पहले प्यार की सौगात में,
वो तुमसे मिलने के इन्तजार में,
घड़ियाँ गिनना,
वो तुमसे करने को बातें इकट्ठी करना,
वो मिलने  की हड़बड़ाहट,
वो बैचेनी वो घबराहट,
वो गला खुश्क होना ,
होठों का सूख जाना ,
वो तुमसे नज़रें चुराना ,
वो दिल की धडकनों का बढ जाना,
वो तुम्हे सुनते रहने की चाहत,
वो तुम्हारी मुस्कुराने की आदत ,
वो हमारी खिलखिलाहट भरी हंसी,
वो तुम्हारी  आँखों की कशिश ,
वो तुम्हारे बारे में सोच कर मुस्कुराना ,
वो तुम्हारा ख्वाबों में आना,
वो  रूठना- मनाना,
हँसना- रुलाना,
और धीरे -धीरे
 मेरी जिन्दगी बन जाना,
आज तुमसे जुदा होने के बाद,
पाना चाहती हूँ एक बार फिर से वो सब,
और लेना चाहती हूँ ,
अपने जीवन की अंतिम साँस,
  उसी कल में।

कठपुतलियां



कुछ भी  तो नहीं होता,
 इन्सान के हाथ में,
न किसी को चाहना,
न भूल पाना,
फिर हम क्यों कोशिश कर रहे हैं,
एक दुसरे को भुलाने की,
जब कुछ है ही नहीं हमारे हाथ में,
जिसका जिसके साथ,
जितने दिन का संयोग होगा ,
उतने ही दिन साथ रहना होगा,
फिर तो बस एक वक़्त ही है,
जो दूर कर सकता है,
किसी को किसी से,
या बना देता है ऐसी परिस्थितियां ,
तुमने भी तो एक दिन यही कहा था न,
कि  कोई बेवफा नहीं होता,
ये तो वक़्त है ,
जो बेवफा बना देता है किसी को,
फिर हम क्यों दोष दें एकदूसरे को,
जब हम हैं सिर्फ,
 वक़्त के हाथो की कठपुतलियां।


मंगलवार, 26 जून 2012


क्या सोचा था ,
और क्या हो गया,
क्या हमने कभी सोचा था,
कि  हमारे प्यार की परिणिति,
 यूँ आंसुओ में होगी,
किरिच-किरिच कर ,
टूट जायेंगे हमारे सपने,
दोष किसे दूँ ,
जानती हूँ कसूरवार मैं हूँ,
लेकिन क्या समझाने पर भी,
तुम समझ पाओगे ,
 कि  क्या थी मेरी मनोस्थिति ,
जब लिया था मैने ,
तुमसे अलग होने का  फैसला,
क्या समझ पाओगे तुम,
 मेरे अन्दर की उस रिक्तिता को,
उस खालीपन को ,
मेरी आत्मा की उस अतृप्तता  को,
जो रह गई  है,
तुम्हारे जाने के बाद।




जानते हो ,
तुम्हारे और मेरे प्यार का,
 वो एक पल ,
जब हम दोनो ने,
पहली बार एक दूसरे को,
 अपना माना  था ,
उतना ही सच्चा है ,
उतना ही सात्विक,
जितना भोर के समय,
किसी मंदिर में बजता शंख,
या किसी मासूम से बच्चे की पहली हंसी,
जिसमे कहीं कोई बनावट नहीं,
निश्छल और निष्पाप।
ये अलगाव ये दूरियां,
तो हमारी अपनी बनाई  हुई हैं,
सच्चा तो बस वो एहसास ही था,
जिसने बांध दिया था,
दो अजनबियों को,
एक अनजाने बंधन में,
जगाई  थी प्रेम की भावना ,
हमारे अंतर्मन में,
जो जलती रहेगी सदा ,
हमारे न चाहने पर भी हमारे मन में।


बुधवार, 13 जून 2012


चेहरे पर अजनबीपन के
मुखोटे लगा कर भी,
हम नहीं बन सकते अजनबी,
क्योंकि पहचान चुके हैं,
हम दोनों के मन एकदूसरे को,
और ये पहचान अब की नहीं ,
है बहुत पुरानी ,
तभी तो इतने सारे चेहरों की भीड़ में,
 मेरे मन को भाये तो बस तुम ,
जाने कितनी बार ,
पहले भी मिले होंगे हम यूँही ,
और शायद आगे भी मिलेंगे,
नए चेहरों के साथ,
चेहरों का क्या है,
चेहरे तो बदलते रहेंगे,
ये तो एक भ्रम है,
 सच  है तो बस केवल मन,
जो ढूंढ ही लेता है  तुमहे,
हर बार,चाहे  तुम
 लाख दीवारें  खडी  करो
अजनबीपन की,
लेकिन ढूंढ ही लेंगी मेरी आँखे तुम्हे
 हर बार ,हमेशा.