मंगलवार, 12 जून 2012

आज तुम्हारे लिए बन कर रह गयी हूँ में,
बस एक अतीत,
एक बीता हुआ कल,
लेकिन शायद तुम्हे पता न हो,
की अब मेरे जीने का सहारा बन चुका है
वही बीता हुआ कल,
इतना जज़्ब हो  है मुझमें,
उसका हर एक पल,
कि  वही बन चुका  है,
 मेरा आज और आने वाला क ल,
वर्त्तमान में रह कर भी में खोयी रहती हूँ
 उसी अतीत में,
जीती रहती हूँ उन्ही लम्हों को बार बार ,
जो गुज़ारे थे तुम्हारे साथ,
  शायद मै  छोड़  आई हूँ खुद को
उसी पल में,
और अब ढूँढती रहती हूँ,
उस हर पल में,
अपनी और तुम्हारी परछाइयों को ,
सुनने की कोशिश करती हूँ,
उन प्यार भरी बातों  को,
भरने के लिए उस खालीपन को,
जो रह गया है,
तुम्हारे जाने के बाद।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें