मंगलवार, 26 जून 2012





जानते हो ,
तुम्हारे और मेरे प्यार का,
 वो एक पल ,
जब हम दोनो ने,
पहली बार एक दूसरे को,
 अपना माना  था ,
उतना ही सच्चा है ,
उतना ही सात्विक,
जितना भोर के समय,
किसी मंदिर में बजता शंख,
या किसी मासूम से बच्चे की पहली हंसी,
जिसमे कहीं कोई बनावट नहीं,
निश्छल और निष्पाप।
ये अलगाव ये दूरियां,
तो हमारी अपनी बनाई  हुई हैं,
सच्चा तो बस वो एहसास ही था,
जिसने बांध दिया था,
दो अजनबियों को,
एक अनजाने बंधन में,
जगाई  थी प्रेम की भावना ,
हमारे अंतर्मन में,
जो जलती रहेगी सदा ,
हमारे न चाहने पर भी हमारे मन में।


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