जी चाहता है ,
कि एक बार ,
जोर से हंस पडूँ खुद पर,
आखिर क्यों यकीं हो चला था मुझे तुम पर,
और तुम्हारी बातों पर,
और सोचने लगी थी मैं,
की अगर जिन्दगी में कभी ,
जलना पड़ा मुझे ग़मों की धूप में,
तो भाग कर छुप जाऊंगी तुम्हारे साये तले ,
और बचा लोगे तुम मुझे ,
ग़मों की तपिश से,
अपने प्यार की शीतलता देकर,
लेकिन कभी सोचा न था,
की मुझे गमो की धूप में जलता देखकर,
तुम छुप जाओगे कहीं जाकर,
और दूर से देखोगे मुझे ,
जलती हुई झुलसती हुई।
कि एक बार ,
जोर से हंस पडूँ खुद पर,
आखिर क्यों यकीं हो चला था मुझे तुम पर,
और तुम्हारी बातों पर,
और सोचने लगी थी मैं,
की अगर जिन्दगी में कभी ,
जलना पड़ा मुझे ग़मों की धूप में,
तो भाग कर छुप जाऊंगी तुम्हारे साये तले ,
और बचा लोगे तुम मुझे ,
ग़मों की तपिश से,
अपने प्यार की शीतलता देकर,
लेकिन कभी सोचा न था,
की मुझे गमो की धूप में जलता देखकर,
तुम छुप जाओगे कहीं जाकर,
और दूर से देखोगे मुझे ,
जलती हुई झुलसती हुई।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें