या एक कल्पना ,
जिसमें खोकर मैं भूल जाती हूँ ,
अपने जीवन की कड़वी सच्चाइयों को,
कुछ देर के लिए याद नहीं रहता ,
कि सच वो नहीं है,जो मैं सोचती हूँ,
सच वो है जो मैं देखती हूँ,
जिसे झेलती हूँ,जिसे जीती हूँ,
इस सच को जान कर भी,
मैं निकल नहीं पाती ,
या निकलना ही नहीं चाहती,
तुम्हारे सपनो से बाहर,
क्योंकि इन सपनो में,
मैं वो सब पा लेती हूँ,
जो नहीं मिलता मुझे यथार्थ में,
वो सब कह देती हूँ जो नहीं कह पाती ,
तुम्हारे सामने आने पर,
वो सब सुन लेती हूँ,
जो तुम कभी कहते ही नहीं,
देख लेती हूँ तुम्हे जी भर के ,
छू लेती हूँ ,महसूस करती हूँ तुम्हे
अपने पास, बहुत पास,
लेकिन सिर्फ कुछ पलों के लिए,
पर वो कुछ पल ही दे जाते हैं मुझे वो सब,
तरसती रही हूँ जिसके लिए आज तक ।